भारत का इतिहास जानिए | bharat ka itihas janiye |
हैलो दोस्तों आप सभी का मेरे blog signola मे आपका स्वागत हे | आज मे आपको बताने वाली हु तो आज शुरू करते हे भारत का इतिहास जानिए
17 मे 1498 वर्तमान केरल राज के कालीतट पर समुद्र के रास्ते कुछ नाविकों ने कदम रखा | जिसके बाद मानो हमारे देश भारत की तकदीर ही बदल गई | इसकी कहानी कुछ अलग ढंग से ही लिखी जानी लगि | दोस्तों ये वोह दिन था जब युरोपियन समुद्र मे नाव से खोज करते करते वास्को – दो – गामा ने भारत की खोज की थी | अब बोहट लोग सोच रहेहोंगे की भारत का इतिहास हजारों साल पुराना हे | सदियों से यहा जन पद, मौर्य साम्राजय , गुपता साम्राज ओर दिल्ही सलमाप्त के आदि राजा ओने राज किया था | तो कोई कएसे भारत की खोज 1498 मे इसमी मे कर सकता हे |
केसे शुरू हुआ था भारत को खोजने का सफर |
दोस्तों वास्को – दो – गामा जन्म 1960 के आसपास ही पुर्तगाल के समकस हुआ था | उनके पिता एस्तेवाओ द गामा अच्छे नाविक ओर वोह भी समुद्री कोज करता थे | वास्को - द - गामा सारा बचपन अपने पिता के साथ नाविक ओर यात्रा मे बीता था | 1480 मे वास्को - द - गामा ने अपने पिता का अनुशारण करते हुए भूतकाली नवशी नामी मे सामील हुए | यही पे उन्होंने नोचालन का एक ऐडवांश तरीका ओर लबे समय तक यात्रा करना सिखा | फिर उस समये भूतकाली के राजा ने हेनरी जिन्हे हेनरी ध नाविगतरों नामसे भी जाना जाहता था | उन्होंने उतर आफ्रिका मे कई सफल समुद्री यात्रा तथा खोजों को सहायता तथा सर्वक्षण प्रदान किया था | जिस वजह से बोहट से नाविक नये नये द्वीपों को ढूंढ ने की कोशिश किया करते थे | इसिके चलते 1487 मे पुर्तगाल के लिए एक प्रसिद्ध खोज करता बार्टोलोमेऊ दीयास आफ्रिका से दर्शनी यात्रा करके ये पता लगा लिया था की त्यकी हिन्द महासागर ओर ऐटलंकिक महासागर एक दूसरे से जुड़े हुए हे | जिसके बाद डिगामा जो समुद्री यात्रा ओ को खोज बिन मे घेरी दिल जसबी रखता था | वोह जनता था की यदि हिन्द ओर ऐटलंकिक महासागर आफ्रिका के अंत मे जोड़ते हे वोह आफ्रिका का से दूर कोने दक्षिण आफ्रिका मोजूद केप हॉप ओटहॉप के माध्यम से भारत तक जानेका मार्ग खोज शकता हे | जिसके बाद 1497 मे को वास्को - द - गामा ने चार जहाज ओर एक सो सतर आदमी ओ के साथ पुर्तगाल लिजबन शहर से अपनी यात्रा शुरू की वोह खुद दो सो टन वजनीय सेन खेजनीय जहाज मे सवार हुआ ओर अपने छोटे भाई पाउलो को सेन्ट तारफ़ील जहाज का नेत्रक सोप दिया फिर कुछ दिनों बाद उनका जहाज ही बेड़ा इस समय की मूर्ख पर देश के निकट स्थित केन्द्रीय से गुजर ते हुए केप वर्दे द्वीप पोहुचा ओर वही 3 अगस्त तक रुक राहा | आपको बता दे वे लोग अपने साथ पथ्थरओ के स्थभ लेके आया करते थे| जिसे वे लोग मार्ग को चिन्हित करने के लिए विभिन महेतपूर्ण पड़ाव ऊपर स्थापित करते थे | जिस की उन्हे वापशी रास्ता मालूम हो | वास्को - द - गामा ने गिन्नी की थाडी की समुद्री द्धाराओ से बचने के लिए ऐटलकीक महासागर मे एक लंबा चकर लगाया ओर केप ऑफ कोफ़ो के दोरे के लिए पूर्व के लिए ये भारत की खोज मे उनकी पहेली सफलता थी | फिर 7 नवेम्बर को उनका बेड़ा आजके दर्शन आफ्रिका मे स्थित सेंट बेनल मे पहोचा | इस समय सेट हेलेना बेगम मॉसम खराब था वहा तेज हवा ओर समुद्री लहेरे चल रही थी | जिस वजह से वास्को - द - गामा का दल 22 नवेम्बर तक आगे बाद नहीं बड सकता लेकिन फिर भी कुछ दिनों बाद मोसम याचा होने पर उन्होंने यात्रा शुरू कर दी अब वे केप ऑफ गुड वे जहा पोचकर उन्होंने इस जगह का अछेसे दोरा किया |
दोस्तों आपको बतादे वास्को - द - गामा ने जब अपने स्थान पोचे तब ही उन्होंने महशूश किया उनका भारत को खोज ने का सपना हकीकत मे तकदीर हो सकता हे ओर फिर मार्ग को चिन्हित करने पहेले के गाती वहा पर एक पथ्थर स्थमभ स्थापित किया ओर फिर आगे की यात्रा की तैयारी करने लगे केप ऑफ गुड से आगे की यात्रा 8 डिसिम्बर शुरू की ओर क्रिशमश आने तक विदक्षण आफ्रिका नटाल तट पर पहोच गए | अलग अलग नदियों को भीतर ओर बाहर से पार करते हुए गामा का बेड़ा धीरे धीरे मुजाबिक के ओर पहोचना शुरू हुआ इस बीच मे लगभग एक महीने तक रुके ओर जहाज ओ की मर्मत किया फिर 2 मार्च 1498 मे डिगामा का बेड़ा पोच गया | जब दिगमा अपने दल के साथ मुजाबिक उतरा ओर वहा के नीवाशियों से मिला उन्हे लगा की ये पुर्तगाल जहाजी भी उनहिकी तरह मुस्लमान हे इसलिए उन लोगोने उनकी खूब मदद की डिगामा का मुजाबिक पड़ाव डालना काफी योगी स्थित `हुआ | वहा उसे समुद्री किनारे बंदर ग्राह पर सोने चांदी तथा मसालों से भरे हुए चार पाँच जहाज मिले उसकी मुलाकात अेसे स्थानी लोको से हुई जो कभी कभी भारतीय समुद्री तटो की यात्रा पर करते थे | इससे वास्को - द - गामा को पूरा विश्वश हो गया की वो उचित दिशा ओर आगे बड रहे थे ओर उनको उस दीक्षकों समज ने की मदद मिली फिर 7 अप्रिल 1498 मे को उनका बेड़ा मुमबाशा मे प्रवेश कर चुका तथा यात्रा की एक महत्व पूर्ण यात्रा का ठराव मुमबासा की ही मलीदिमी मे लगर डाल दिया | मालीमी मे डिगागा की मुलाकात कांजीमालम नामक अेसे गुजराती नाविक से हुई जो भारत की दक्षिण पश्चिम तट के कालीकट जनेका मार्ग जानता था उस गुजराती नाविक को महत्व से देखते हुए डिगा माने उसेही मार्ग दरक्ष के रूप मे अपने बेड़े मे ले लिया ओर फिर अगले बीश दिनों तक लगा तार हिन्द महासागर मे चलने के बाद डिगामा को धीरे धीरे भारत के गाट ओर पहाड़ दिखने लगे फिर 17 मई 1498 मे भारत के दक्षिण पश्चिम मे स्थित कालीकटबंदर बनाहर गाँव जा पहोचा कालीकट मे स्थानी राज नायकों के द्धारा वास्को - द - गामा का अच्छी तरह से स्वागत किया | वोह यह लगभग अगले 3 महीने तक रहा ओर भारत के बारे मे बोहत सारी महत्वपूर्ण जानकारी कठा कर रहा था |
दोस्तों वास्को - द - गामा भारत आने ओर कालीकट मे उतर ने के बाद भी कई ऐसी घटना हुई जिसके बारे मे अभी भी लोगों को सहे मती नहीं हो पाई | दोस्तों यह 3 महीने रहेने के बाद वास्को - द - गामा 2 साल की अधिक समय की यात्रा करते हुए 18 सितंबर को वापस लॉट आए इस तोढ़न उसने लगभग 38,600 किलोमिटर की यात्रा की ओर दोस्तों आपको बता दे इस लबी यात्रा मे उसके कुल एक सो सतर साथी थे एक सो सोला की यात्रा के दोरान मुत्यु हो गई | वास्को - द - गामा से इस उपलबधी से पुर्तगाल के राजा बोहट खुश हुए थे उन्होंने उसे दूसरी बार फिर से 1502 मे भारत की यात्रा मे भेज था | इतिहास मे लोगो का मानना हे जब भी गामा विभिन्न प्रकार भारती मसालों ओर रेशम के साथ अपने देश पुर्तगाल लोटा उसने केवल मसाला बेच कर यात्रा पर खर्च कीये पैसों से 4 गुना ज्यादा पैसे कमली ये थिए | दोस्तों 1524 मे वास्को - द - गामा की मृत्यू कालीकट मे हो गई जब वोह अपनी तीसरी यात्रा मे भारत आया हुआ था | ओर कई इतिहास कारक मुताबीत उसकी मृत्यू के कारण मलेरिया था दोस्तों जब डिगामा ने यूरोप ओर भारत का समुद्री खोज लिया था | तब डिगामा का नाम पूरे यूरोप मे बोहट मशहूर हो गया था ओर उसकी साहशिक यात्रा की चर्चा सभी यूरोपी देशों मे होने लगि तथा धीरे धीरे अन्यों देशों मे उसी खोजे हुए रास्ते से अपने अभ्यान भारत भेजने लगे | जिस वजह से भूतकालीन `के पास डेनिश , ब्रिटिश ओर फ़्रांच के साथ आदि भारत आना शुरू हो गए | उसके बाद आगे के तस्क मे भारत मे जो भी हुआ वोह हम जानते हे क्या हुआ कएसे भारत इन यूरोपीं देशो की कॉलनी बन गया |
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