दिल्ली का इतिहास जानिए | Delhi ka itihas janiye
हैलो दोस्तों आप सभी का मेरे blog signola मे आपका स्वागत हे | आज मे आपको बताने वाली हु Delhi ka itihas janiye | तो आज शुरू करते हे दिल्ली का इतिहास जानिए |
हैलो दोस्तों आज हम बात करेगे भारत की राजधानी दिल्ली की, दिल्ली हमेशा ही इंडिया का एक राजनीतिक महत्व केंद्र रहा हे | जाहे वोह प्राचीन इंडिया की बात हो या फिर नये इंडिया की, दिल्ली राजनीतिक इतिहास बोहत अस्थिर रही हे बेशक इतिहास | अगर पहेले की बात की जाये तो दिल्ली महाभारत के पांडवों के राजधानी रहे चुकी हे जिसको उस वक्त इन्द्र पद कहा जाता था पर हम यहा पर इतिहास की बात कर रहे हे | ईरान , अफगानीस्थान ,मोनगोलस ,राजपूत ओर मराठा इन सब लोगों ने दिल्ली पे राज करने की हमेशा जाह रखी हे | इस वजह से कभी युद्ध हुआ कभी लूट हुई | 11 राजवंशों के 50 सेभी अधिक शासकों ने शासन किया हे कोई भी राजवंशों ज्यादा बोहट के लिए दिल्ली पर हुकमत नहीं चला पाते बस इन सब मे से राजपूतों ने ही दिल्ली मे लगभग 500 से 600 साल तक शासन किया इतिहास कारों की माने तो राजपूत राजा कोई ही दिल्ली के संस्थापक कहा गया हे | दिल्ली का इतिहास रोशनी मे आता हे 7मी सदी से क्योंकि बोहत से नए शासक जब भी गदी सभाल ते तो उसके पहेले के इतिहास को मिटा ने की कोशिश करते हे त्याकी इतिहास सिर्फ उनको याद रखे |
दोस्तों हम जानते हे की 8मी सदी मे जहा दिल्ली पे राज कर रही थी राजपूतों की तोमर राजवंश क्योंकि हिन्दी राजा ओने दिल्ली का संस्थापकों मिल किया हे साउथ दिल्ली मे जो लाल कोट तोमर राजवंश के राजा आनंगपाल ने बनाया था 736 मे जिनका नाम दिल्ली के आर्यन कुलर कुतुम जटिल पाया गया हे तोमर राजवंश ने 4 राजा आनदपाल को मार्ग सिखण्ड मृत्यू के बाद दिल्ली का तज अजमेर पे राज कर रहे हे चौहनों के हाथों लग गया | जहा के राजा आनदपाल तोमर के म्रेटनल ग्रेंडसन यानि उनके पोते थे ओर सिर्फ अगले 11 साल के लिए 1180 से 1192 तक पृथ्वीराज चौहान ने दिल्ली पे राज किया पर पृथ्वीराज चौहन की बात सारे राजपूत राजाओ मे अलग थी | वह उस समय के सभी चल रहे हिंदू राजाओं की तुलना में एक महानराजा थे ओर होशियार थे | पृथ्वीराज चौहान ने वह से होने वाले मुस्लिम आक्रमण का यानि हमले का अंदाज पहेले ही लगा लिया था ओर इसीलिए उन्होंने सारे राजपूत राजाओ को एक जूथ करके एक बैनर के अन्डर लाने का काम किया ओर जेसे ही पहेली बारी ईरान इंवेदर महेंद भूरी इंडिया मे आया उसको हरा दिया पर हराने के बावजूद महेंद भूरी को जींद वापस देना वोह सबसे बडी गलती थी | राजपूत राजाओ इन फ़ॉरेन इनविडेंस का तुलना करे तो मूसली शक्ति दोनों तरफ थी पर अलग ये था के राजपूत शासक लड़ाई मे हमेशा मूल्य ओर नैतिकता का पालन करते हैं | जेसे की निहतके पर वार नहीं करना ऐसी बाते पर हिंदी मुस्लिम आक्रमणकारी हमेशा जीत के लिए जग लड़ते थे ओर नैतिकता का पालन नहीं करते थे | इसी वजह से महेंद भूरी ने 1192 मे दिल्ली पर फिर से चड़ाई करली ओर इस बार पूरा चौहान को बाकी राजाओ के साथ ना मिलने के कारण हार का सामना करना पडा ओर पृथ्वीराज चौहान बने दिल्ली पे राज करने वाले आखरी हिन्दू राजा ओर यही से इस्लामी भ्रमित भारत मे शुरू हुआ ओर इसी वजह से दिल्ली मे खाफी युद्व हुए ओर बोहत सारी लूट हो गई महेंद भूरीने जीतने के बाद दिल्ली का पद उसके गुलाम कुतुब-उद-दीन ऐबक जो की सब से गुलाम थे पर अपने महेनत से गुलाम से सिपाई ओर सिपाई से जनरल बना गुलाम वंश जानाजाता था | इसी दोहरण ही रजिया सुल्ताना भी 4 साल दिल्ली की सुल्तान बनी वह दिल्ली पर शासन करने वाली अब तक की एकमात्र महिला हैं | कुतुबमिनार भी दिल्ली मे कुतुब-उद-दीन ऐबक ओर गुलाम वंश बनाया था ओर जब गुलाम वंश जब भारत मे नियम कर रही थी तब ही उत्तर एशिया मे चगेशखान संस्थापक मंगोल साम्राज्य की ताकत बडती जा रही थी पर गुलाम वंश ने मंगोलिस को भारत मे आने मे रोकने मे काफी कामयाब रही पर इस राजवंश ने तीसरे सुल्तान किलतूश मिस के मरने के बाद जो भी सुल्तान आए वोह सब कमजोर ओर अचूक थे दिल्ली सरटेल के लिए ओर इसी वजह से दिल्ली सरटेल जलालुद्दीन ख़िलजी के हाथों मे चला गया | पर जल्दी ही जलालुद्दीन ख़िलजी हत्या कर अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली सरटेल पर कब्जा कर लिया अलाउद्दीन खिलजी को सबसे शक्ति पूर्ण शासक मे से एक माना जाता हे | अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली सरटेल को सावधान इंडिया मे तमिलनाडु के मधुराई तक पोहचने मे कामयाब रहा अलाउद्दीन खिलजी ने गुजरात, मेवाड़, मालवा , राठमबोर, चालोर वालग्न पे भी कब्जा किया पर उस वक्त भारत के वेपार मे भी काफी उन्ती लाई मुक्त बाजार नीति का उपयोग करके जितनी भी जरूरत मंद चीजे थी उसका पैसा कम कर दिया ओर साथ ही अलाउद्दीन खिलजी मगोलों को भारत के बाहर रखने भी कामयाब हुआ पर अलाउद्दीन खिलजी की मौत के बाद खिलजी राजवंश ज्यादा वक्त पर अपने पेरो पर खड़े नहीं रहे पाए ओर उसके बाद तुग़लक राजवंश गयासुद्दीन ने दिल्ली की गदी सभाली तुग़लक राजवंश दोहरण काफी अच्छा सामाजिक सुधार हुआ पर तुगल्को की सबसे बड़ी ना कामयाबी रही मगलों को ना रोक पाना तेगलूला सामान्य मगोला सेना के प्रशिया, अफगानीस्थान ओर मुल्तान मे जीत हाशिल कर भारत मे सबसे पहेले पंजाब मे आए जहा सिख ओर अहिरोने उसका जमके मुकाबला किया पर रोकने मे नाकामियाब रहे ओर वहा से उसने दिल्ली पर चड़ाई की जहा तुगलोकों का सुल्तान दिल्ली को तेगनुके हाथों बर्बाद होने के लिए छोड़ कर गुजरात भाग गया | तेगलूर ने दिल्ली मे हाहा कार मचादी रेप, मडर , लूट, पूरे पंदरा दिन तक चलती रही दिल्ली मे ओर पूरे उत्तर भारत मे भारत से जाते वक्त भी रास्ते मे हरदद्वार ,चाग्रा ,जंबू को बर्बाद कर दिया | बड़े पहेमाने पे भारत की लूट हुई कहेटे हे इसके बाद दिल्ली को अच्छे तरीके से फिर से उभर ने केलिए अगले 100 साल लगे | तेगलूल जाते जाते खिजर खाको दिल्लीका तक सोप गए |
दोस्तों अब यहा से शुरू हुई सैय्यदिस राजवंश पर आप सब के मन मे सवाल या रहा होगा की राज करने के लिए , युद्व करने के लिए ओर लूट करने के लिए दिल्ली ही क्यू सब अबगानी , ईरानी,मंगोलियां क्यू दिल्ली के पीछे पड़े हे उसके दो कारण था भौगोलिक स्थिति ओर दिल्ली से जुड़े हुए राष्टीय यानि ट्रेड कनेक्टिंग रूडस अगर भौगोलिक स्थिति देखे तो दिल्ली इस्लामी राज्य हे ईरान , अफगानीस्थान जो उस टाइम मोगलियम एम्पीयार हुआ करते थे ये दिल्ली के पास आते हे ओर दूसरा दिल्ली से पूरे भारत को जोड़ वाले राष्ट्र हे इसी कारण दिल्ली को सभी पान जाहते हे |
सैय्यदिस राजवंश के आखरी सुल्तान ने अलाउद्दीन आलम शाह ने खुद से ही दिल्ली को लोदी के हवाले कर दिया ओर अगले कुछ सालों के लिए लोदी राजवंश ने दिल्ली पर हुकूमत की लोदी राजवंश के दूसरे सुल्तान सिकंदर लोदी ने भारत के वेपार मे साहित्यकार मे खाफी अच्छा योगदान दिया साथ उसने जो संस्कृत ग्रथो मे दवा दी हुई थी उसका उनकी भाषा मे अनुवाद करवाया | लोदी राजवंश अे आखरी सुल्तान इब्रानहीं लोदी को मुगलोके बाबर ने हराया | अब आप सोच रहे होंगे की मुग़लस कहा से या गए बीचमे इसके लिए आपको 150 साल पीछे जाना पड़ेगा | याद हे तेनगुल ना जिसने हिंदुस्तान को बर्बाद करके रख दिया था उसी के परिवार से थे मुग़लस बाबर ने इब्रानहीं लोदी को पानी पद मे हरा कर मुग़लस नियम को दिल्ली मे स्थापित किया | बाबर ने पानी पद युद्व मे तोपों का इस्तमाल किया ओर ये पहेली बार था भारत मे किसी ने सकेन्स का किसीने इस्तमाल किया पर इसबार मुगल सिर्फ 14 साल तक दिल्ली मे ये नियम कर पाया | इसका कारण आप मुगल सुल्तान हुमायू का कमजोर प्रशासन ओर खुद की कमजोरीओ को ना सुधारणा कहे सकते हो | शेरशाह सूरी जोकी सूरी राजवंश से था उसने हुमायू को हरा कर दिल्ली मे कब्जा कर लिया ओर एक बार फिर दिल्ली पर एक नया जंडा लहेराया | शेरशाह सूरी ने दिल्ली के सिविल मिलेटरी ऐडमिकेशन काफी सकारात्मक बदलाव लाए ओर अभी जो इंडिया की चलन हे रूपीय वोह सबसे पहेले शेरशाह सूरी ने परिचय दिया था ओर दिल्ली पे 5 साल अपनी हुकूमत चलाने के बाद अक्सिदंतली एक गनपाउडर् मे शेरशाह सूरी की मौत हो गई ओर इसिक फ़ीड उठाते हुए मुगलोके हुमायू ने काबुल से आके दिल्ली पर हमला बोल दिया ओर फिर से एक बार दिल्ली पर मुगलों का जंडा लहेराय ओर इसके बाद लगभग अगले 300 सालो तक मुगलोकों किसी ने चुनोती नहीं दी | उन्होंने 300 साल तक दिल्ली पर राज किया जिसमे अकबर , जहागिर, शाहजहा ओर औरगज़ेब अेसे सुल्तानों ने दिल्ली की गदी सभाली पर इनसे भी मुगल सुल्तानों मे सबसे हटके था बादशाह अकबर | अकबर ने पूरे राजपूतों को हर मुनकीं तरीके से अपने साथ खड़ा कर दिया | उनसे एक अच्छी संधि बनाई | उन सबको अलग-अलग प्रवेश पर रख दिए ओर सभी को साथ लेके आगे बड़े अकबर ने एक स्टेबल एमपाएर खाद्य करके पूरे 50 साल तक उसे चलाया | उसके बाद मुगल सुल्तान शाहजहा ने ताजमहेल बनाया ओर जब ऑरगज़ेब ने दिल्ली गदी सभाली तब उसे बोहत मराठा का सामना करना पडा | मुगलों के वक्त भी बाहरी ताकतों का भारत को लूटना बांध नहीं हो पाया| नादिर शाह ओर अहमद शाह दुरानी जेसे ओर अफगानीओ ने उत्तर भारतीय मे काफी लूट मचाई इसी वजह से मुगल साम्राज्य का पूरा पतन शुरू हुआ| सन 1800 के बाद मुगल सुल्तान सिर्फ नेम के रहे गए थे | ब्रिटिश इट्स कंपनी मे केलकता को केपिटल बनाके धीरे-धीरे अपना कब्जा कर लिया था भारत मे रुकिए रुकिए अब आप बोलएगे अब अे ब्रिटिश अचानक से कहा से बिचमे आए इसको जानने के लिए फिर से आपको 200 साल ओर पीछे जाना पडेगा | जब पहेली बार 1600 मे ब्रिटिश इट्स इंडिया कंपनी गुजरात के सूरत सीपोर्ट पे चाय , ओपियम , नमक ओर सील के कपड़ों का वेपार करने के बहाने उतरे थे उस वक्त से मुगल सुल्तानोंने भरतोय शासकोंने इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया की किश तरह ब्रिटिश इट्स इंडिया कंपनी पहेले इंडिया के बाहर वेपार मे ओर धीरे-धीरे इंडिया की राजनीति मे सामील होती गई | ब्रिटिश इट्स इंडिया कंपनी ने इंडिया की आंतरिक राजनीति का काफी फायदा उठाया| ब्रिटिशओ की इंडिया मे हुकूमत जमाने के सबसे बड़े 2 कारण हे 1. भारतीय शासकों को एकता ना होना | ओर 2. भारतीय प्रशकों की बेपरवाही | शहीद भगत सिंह ने फाशी पर चड़ने से पहेले अपने खत मे लिखा था | "यह अग्रेजों का शासन इसलिए नहीं हे क्यू की ईश्वर ऐसा जाहता हे बल्कि इसलिए हे उनके पास ताकत हे उसका विरोध करने का साहस नहीं | अग्रेज ईश्वर की मदद से हामे काबूमे नहीं रख रहे बल्कि बंदूकों, गोलीओ, पोलिस ओर सेनाओ के सहारे ऐसा कर रहे हे ओर सब से ज्यादा हमारी बेपरवाही की वजह से |"
फिलहाल चलते 1857 मे इंडियन रिवॉइड जहा भारतीयो ने ब्रिटिश इट्स इंडिया कंपनी के खिलाफ पहेली बार आवाज उठाई ओर इस रिवोल्ट मे क्रांतिकारीओ ने दिल्ली जाकर आखरी मुगल सुल्तान बहादुर शाह जफर को हिंदुस्तान का सुल्तान गोसीत कर दिया पर ब्रिटिश इट्स इंडिया कंपनी इस रिवोल्ट को दबाने मे कामियाब रही क्योंकि सभी इंडियन कंपनी अच्छे से एक जूथ नहीं हुए थे उस वक्त | अग्रेजों ने आखरी मुगल सुल्तान बाहदूर शाह ज़फ़र को बर्मा भेज दिया ओर ब्रिटिश कारुन ने इंडिया मे डाइरेक्ट रूल करना शुरू कर दिया | क्वीन विक्टोरिया बनी एम्प्रेस ऑफ इंडिया | 1911 तक कलकता इंडिया का केपिटल हुआ करता था उसके बाद दिल्ली को बनाया गया | इंडियन कमीनयूटी ब्रिटिशो के कायेदे कानून से बोहट परेशान थी उनके लगाए हुए टैक्स आदि बिल्कुल भी भारतीय जनता के लिए टोलेबर नहीं था| देखिए अगर आप किसी एक कम्युनिटी पे बोहट अत्याचार करते हो तो तब ही उस कम्यूनयूटी मे एकता जाग उठती हे आवाज उठाने मे अेसे ही एकता भारत मे जागी ओर बोहत लोको के बलिदान, त्याग ओर महेनत के बाद भारत को 15 अगस्ट 1947 आजादी हासिल हुई ओर 1952 मे चौदरी भ्रम प्रकाश बने दिल्ली के पहेले चीफ मिनिस्टर तो ये थी दिल्ली की कहानी ओर जब भी आप दिल्ली जाव वहा की सड़कों ओर गलियों मे गुमओ तो जरूर याद रखना की सचमुच इतिहास मे कितनी कठनाई से गुजर हे दिल्ली कितना कुछ देखा हे सहा हे दिल्ली की इस जमीन ने सो आज के लिए इतना ही |
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