वट सावित्री व्रत क्यों किया जाता हे जानिए | Vat Savitri vrat kyo kiya jata he janiye
हैलो दोस्तों आप सभी का मेरे blog signola मे आपका स्वागत हे | आज मे आपको बताने वाली हु
तो आज शुरू करते हे वट सावित्री व्रत क्यों किया जाता हे जानिए |
एक स्त्री जो अपने पति को यमराज से वापस ले आई थी | पति के लिए उसकी ऐसी भावना पूरे भारत वर्ष मे एक व्रत के रूप मे मनाया जाता हे | हैलो दोस्तों My blogs Signola मे आपका हार्दिक स्वागत हे | आज हम बात कर रहे हे सावित्री की क्यू उसने सत्यवान से विवाह किया ओर कएसे यमराज से सत्यवान के प्राणों को वापस ले आई | अेसे ही कुछ प्रश्नों के उतर मिलेगे आपको आज के आर्टिकल मे |
वट सावित्री व्रत के दिन वट वृक्ष की पूजा की जाती है, जिससे विवाहित महिलाओं को अखंड सौभाग्य और सुखी वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद मिलता है। बरगद की जड़ में भगवान ब्रह्मा, छाल में भगवान विष्णु और शाखाओं में भगवान शिव निवास करते हैं। इस कारण से भी बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है। त्रेतायुग में जब भगवान श्रीराम वनवास में थे, तब वे तीर्थराज प्रयाग में ऋषि भारद्वाज के आश्रम में गए थे। वहां उन्होंने वट वृक्ष की भी पूजा की। इसलिए बरगद के पेड़ को अक्षयवट भी कहा जाता है। आज उसके बारे पूरी कथा की वट सावित्री व्रत क्यों किया जाता हे ?
सावित्री मध्यदेश के राजा अश्वपति की पुत्री थी | जब सावित्री विवाह योग्य हुई तब राजा ने अपने पुत्री से कहा की अब तुमहारे विवाह की आयु हो गई हे | इसलिए स्वयं ही अपने लिए वर चुनकर विवाह करलो | उन्होंने कहा धर्म शस्त्रों के अनुसार पुत्री के विवाह योग्य हो जाने पर भी जो पिता कन्या दान नहीं करता वोह निंदनीय हे | ऐसा सुनकर सावित्री वर के खोज मे निकल पड़ी | वह राजऋषि के तपो वन मे पहुची ओर कुछ दिन तक वर की खोज मे गुमती रही | जब वे अपने घर वापस पहोचि तब मधरराज अश्वपति एक सभा मे बेठे हुए थे | उस सभा मे नारदमुनि भी उपस्थित थे | राजा के पुच ने पर सावित्री ने बताया उन्होंने सालदेश के राजा के पुत्र जिनका पालन पोषण जंगल मे हुआ हे वोह पट्टी के रूप मे स्वीकार कर लिया हे | उसका नाम सत्यवान हे , यह सुनकर नारदमुनि चिंतित होकर बोले इस वर की कुंडली मे दोस हे | जो वर सावित्री ने चुना हे उसकी आयु कम हे | उसके पास केवल एक वर्ष ही शेष हे | तब सावित्री ने कहा माना उसे अपना वर मान लिया हे , मे उसी से विवाह करुगी फिर सावित्री ओर सत्यवान का विवाह विधि विधान के साथ सम्पन हुआ | समय बितता गया ओर नारदमुनि द्वारा बताया गया सत्यवान का अंतिम दिन केवल चार दिन दूर था | तब सावित्री ने तीन दिन का व्रत किया , चौथे दिन जब सत्यवान वन मे लकड़ी काट ने जा रहा था | तब सावित्री ने भी साथ जाने का हट किया | सत्यवान ने यह कहेते हुए मना किया की जंगल का रास्ता बहुत कढ़िन हे ओर टूमे व्रत के कारण दुर्बलता भी हे परंतु सावित्री नहीं मणि ओर सत्यवान के साथ चली | जंगल मे लकड़ी काट ते वक्त सत्यवान की तबीयत अचानक बिगड़ने लगी | सावित्री ने सत्यवान शिर अपने गोद मे रखा तब वहा उसे भयानक रूप वाला पुरुष दिखाई दिया , उस पुरुष के हाथ मे पाश था वोह कोई ओर नहीं यमराज थे | सावित्री ने पुछ ने पर उन्होंने बताया मे यमराज हु | तब यमराज सत्यवान के प्राणों को पाश मे बांध कर दक्षिण दिशा की ओर जाने लगे | सावित्री ने कहा आप मेरे पति को जहा ले जायेगे मे उनके साथ जाउगी | यमराज ने सावित्री को समजाते हुए कहा की ऐसा संभव नहि हे, तुम कोई मनचाहा वर मांगलो | तब सावित्री ने सत्यवान के पिता नेनपूजन के पूजती मागली | यमराज ने वर दिया ओर चल पड़े परंतु सावित्री फिर से उनके पीछे जाने लगि , यमराज ने उसे समजाते हुए कहा तुम दूसरा वर मांगलो परंतु मे तुम्हारे पति के प्राण वापस नहीं कर सकता | तब सावित्री ने मांगा मेरे ससुर को उनका राज महेल वापस मिल जाए ओर फिर तीसरा वर मांगा के मेरे पिता को जिनको कोई उप्त नहीं हे वोह सो पुत्र की प्राप्ति हो | ये वर मिलने पर भी सावित्री नहीं मानी , यमराज ने फिर समजाय तुम मुजसे कोई ओर वर मांगलो परंतु वापस लोट जाव | तब सावित्री ने कहा की मुजे सत्यवान से सो यशशवी पुत्र हो | यमराज ने कहा की तथास्तु ओर इस बार यमराज ने वापस जाने के लिए कहा तब सावित्री बोली मे वापस नहीं लोट सकती आपने ही मुजे सत्यवान से सो यशशवी पुत्र होने का वरदान दिया हे ओर इस प्रकार हार मानकर सत्यवान के प्राण वापस उसके शरीर मे डाल दिए | जब सावित्री जंगल मे उसके स्व के पास पहोचि तब सत्यवान के शरीर मे चेतन वापस आ चुकी थी |
इस प्रकार इस पती व्रता नारी के सामने यमराज को भी हर माननी पड़ी | वट पूजा से जुड़ी हुई धार्मिक मान्यता के अनूसार ही तबही से महिलाए इस दिन को वट अमावस्य के रूप मे पूजती हे | दोस्तों आशा करती हु आपको आज का आर्टिकल पसंद आए | हमे comment कर के जरूर बताना |
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