भगवान शिव के 19 अवतार के बारे मे जानिए || Bhagavan shiv ke 19 avatar ke bare me

 

हैलो दोस्तों आप सभी का मेरे blog signola मे आपका स्वागत हे | आज मे आपको बताने वाली हु bhagavan shiv ke 19 avatar ke bare me | शिव वोह हे जिनका ना आदि हे ना अंत |  परमात्मा भगवान शिव ही इस सृष्टि के निर्माता भी हे ओर विनाशक भी धर्मग्रंथों के अनुसार धर्म की रक्षा के लिए ओर अपने भक्तों से प्रसन्न  हो कर शिव कई बार इस द्धारा पर अवतरित हुए हे | तो आइए जानते हे भगवान शिव के कितने अवतार हुए हे | नमस्कार दोस्तों मे हु आपकी दोस्त जुली स्वागत हे आप सभी का My blogs Signola मे  | 


शिवपुराण मे भगवान शिव के 19 अवतार के बारे मे वर्ण किया हे लेकिन बोहट कम लोग भगवान के इन अवतारों के बारे मे जानते हे | शिव के सभी अवतारों के बारे मे जानने के लिए इस आर्टिकल को अंत तक जरूर पढे |


1. वीरभद्रा अवतार :

भगवान शिव का ये अवतार तब हुआ था जब दक्ष द्धारा आयोजित यज्ञ मे मात सती ने अपने देह का त्याग किया था | जब भगवान शिव को ये पता चला तो उन्होंने क्रोध मे अपने शर से एक जटा उखाड़ी ओर उसे रोशपूर्वक पर्वत के ऊपर पटक दीया ओर उस जटा से महा भयंकर वीरभद्रा प्रकट हुए | शिव के इस अवतार ने दक्ष के इस यज्ञ का विध्वंश कर दिया ओर दक्ष का शिर काट कर उसे मुत्युदंड दिया | 


2. पिपलाद अवतार : 

भगवान शिव के पिपलाद अवतार का मानव जीवन मे बड़ा महत्व हे | पौराणिक कथा के अनुसार जब पिपलाद ने देवताओ से पुछा क्या कारण हे के मेरे पिता ददीची जन्म से पूर्व ही मुजे छोड़कर चले गए | देवताओ ने बताया शनि देव के द्रष्टि के कारण तुमहारे पिता जन्म से पूर्व टूमे छोड़कर चले गए थे | पिपलाद ये सुनकर बड़े क्रोधित हुए | उन्होंने शनि को नक्षेत्रमण्डल से नीचे गिरने का शार्प दे दिया | शार्प के प्रभाव से शनि देव उसी समय आकाश से गिरने लगे देवताओ की प्रार्थना पर पिपलाड़ ने शनि को इस बात पर क्षमा किया की शनि जन्म से लेकर 16 साल तक की आयु तक किसीको भी कष्ट नहीं देगे | शिव महापुराण के अनुसार स्वयं ब्रह्मा ने ही शिव के इस अवतार का नामकरण किया था | 

3. नंदी अवतार :

इस अवतार की कथा इस प्रकार हे शिलाद मुनि ब्रह्मचारी थे अपना वंश समाप्त होते देख उनके पित्रों ने शीलद से संतान उतपन करने को कहा शीलद ने अयोनिज ओर मृत्यू हिन संतान की कामना से भगवान शिव की तपस्या की तब भगवान शंकर ने स्वयं शीलद के पुत्र के रूप मे  जन्म लेने का वरदान दिया कुछ समय बाद भूमि ज्योत ते समय भूमि से उतपन बालक मिला शीलद ने उसका नाम नंदी रखा | भगवान शिव ने नंदीश्वर को गणाध्यक्ष बनाया | 


4. भैरव अवतार :

शिव महापुराण मे  भैरव को शिव का पूर्व अवतार बताया गया हे | एकबार भगवान शंकर की माया से प्रभावित हो कर ब्रह्मा ओर विष्णु स्वयं को श्रेष्ट मानने लगे तब वह तेजपुंज मध्य एक पुरुषा कृति दिखलाई पड़ी | उन्हे देखकर ब्रह्माजी ने कहा चंद्रशेखर तुम मेरे पुत्र हो अध्य मेरी शरण मे आयो | ब्रह्मा की ऐसी बात सुनकर भगवान शंकर को क्रोध आ गया उन्होंने उस पुरुषा कृति से कहा काल की कृति सोभीत होने के कारण आप शाकशात काल राज हे, भिसल होने से भैरव हे | भगवान शंकर की इन वरो को प्राप्त क्र कल भैरव ने उंगली के नाखून से ब्रह्मा के पाँच वे शिर को काट दिया ब्रह्मा के पाँच वा  शिर काटने के कारण भैरवब्रह्म हत्या के कारण के पाप से दोषी हो गए | काशी मे भैरव को ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिली काशी वासियों के लिए भैरव की भक्ति अनिवारीय बताई गई हे | 


5. अश्वत्थामा अवतार :

महाभारत के अनुसार पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा कालक्रोधीयम व भगवान शंकर के अंश अवतार थे | आचार्य द्रोणा ने भगवान शंकर को पुत्र रूप मे पाने के लिए गोर तपस्या की थो ओर भगवान शिव ने उन्हे वरदान दिया था की वे उनके पुत्र के रूप मे उनके घर मे जन्म लेगे समय आने पर भगवान रुद्र ने अपने अंश से द्रोणा के बलिशारी पुत्र  अश्वत्थामाके रूप मे अवतार लिया | शिव महापुराण के अनुसार अश्वत्थामा आज भी जीवित हे तथा आज भी धरती पर ही निवास करते हे |


6.  शरभा अवतार :

भगवान शंकर का छठा अवतार हे शरभा अवतार | शरभा अवतार मे भगवान शंकर का सवरूप आंशिक रूप से एक शेर और पक्षी का था | इस अवतार मे भगवान शंकर ने नरसिंह भगवान का क्रोध शनत किया था | हिरण्य ने कशीवू के वर्ध के प्रछात जब भगवान नरसिंह क्रोध शांत नहीं हुआ तो देवता शिव जी के पास पहोचे तब भगवान शिव ने सरभा अवतार लिया ओर वे इसी रूप मे भगवान नरसिंह के पास पहोचे तथा उनकी स्तुति की लेकिन नरसिंह की क्रोधनकी शांत नहीं हुई | ये देख शरभ अवतार भगवान  शिव अपनी पुच मे नरसिंह को लपेट कर ले उड़े तब कही जाकर भगवान नरसिंह की क्रोधनकी शांत हुई | उन्हों शरभा अवतार से क्षमा याचना कर आती विनम्र भाव से उनकी स्तुति की | 

7. गृहपति अवतार :

भगवान शंकर का सातमा अवतार हे गृहपति अवतार | पौराणिक कथा के अनुसार नर्मदा के तट पर धर्मपर नामक एक नगर था | वहा विश्वनार नाम से एक मुनि तथा उनकी पत्नी शुशिवती रहीती थी | शुशिवती ने बोहत काल तक निसंतान रहेने पर एक दिन अपने पति से शिव के समान पुत्र प्राप्ति की इच्छा की पत्नी की अभिलाषा पूरी करने के लिए मुनि विश्वनार काशी आ गए | उन्होंने यह गोर तप किया यह उन्होंने गोर तप द्धारा भगवान शिव की आराधना की एक दिन मुनि को लिंग के मध्य एक बालक दिखाई दिया | मुनि ने बाल रूप शिव की पूजा की उनकी पूजा से परशन हो कर भगवान शिव ने शुशिवती के गर्भ से अवतार लेने का वरदान दिया | कालान तार मे शुशिवती गर्भ वती हुई  ओर भगवान शिव शुशिवती के गर्भ से पुत्र रूप से प्रगट हुए | 

8. दुर्वासा अवतार :

धर्म ग्रंथों के अनुसार  सतीअनुसूर्या के पति महर्षिअत्रिने ब्रह्मा के निर्देशा अनुसार पत्नी सही रक्षकुल पर्वत पर पुत्र कामना के लिए गोर तप किया | उनके तप से प्रसन्न हो कर ब्रह्मा, विष्णु ओर महेश तीनों उनके आश्रम मे आए | उन्होंने कहा हमारे अंश से तुमारे तीन पुत्र होंगे जो तीनों लोको मे विख्यात होंगे ओर मातापिता का यश बढ़ा ने वाले होंगे | समय आने पर ब्रह्मा जीके अंश से चंद्रमा उतपन  हुए | विष्णु से अंश से श्रेष्ट सन्यास पद्धति कों प्रचलित करने वाले दतात्रह उतपन हुए | ओर रुद्र के अंश से मुनिवर दुर्वासा जन्म लिया | 

9.  हनुमान अवतार :

भगवान शिव का हनुमान अवतार सभी अवतारों मे श्रेष्ट माना गया हे | इस अवतार मे भगवान शिव ने एक वानर के रूप मे जन्म लिया था | शिवमहा पुराण के अनुसार देवताओ ओर दांव को अमृत बाटते हुए विष्णु जी को मोहिनी रूप को देख कर | लीलावर शिव ने कामातुर हो कर अपना विरह पात कर दिया | सप्त ऋषिओ ने उस विरहों को कुछ पतों मे संग्रहीत कर लिया | समय आने पर सप्त ऋषिओ ने भगवान शिव के विरह को वनराज केसरी की पत्नी अंजनी के नाक के माध्यम से गर्भ मे स्थापित कर दिया | जिससे अत्यंत तेजस्वी एवं प्रवं पराक्रमी श्री हनुमानजी उतपन हुए |  

10. ऋषभ अवतार :

भगवान शिव ने श्री विष्णु के पुत्र को सहार करने के लिए ऋषभ अवतार लिया था | धर्म ग्रंथों के अनुसार जब भगवान विष्णु देतयो को मारने पाताल लोक गए तो वह उन्होंने बोहत सी चंद्रमुखी स्त्रीया दिखाई दी | विष्णु ने उनके साथ रमण करते हुए बोहट से पुत्र उत्पन कीये | विष्णु के इन पुत्रों ने पाताल से पृथ्वी तक बड़ा उधर्व किया | उनसे गभरा कर ब्रह्मा जी ऋषिमुनिओ को लेकर  भगवान शिवजी के पास गए ओर रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगे तब भगवान शंकर ने ऋषभ रूप धारण विष्णु पुत्र का सहार किया |

11. यतिनाथ अवतार :


भगवान शिव ने यतिनाथ अवतार ने अतिथि बनकर बिलदम्पति  की परीक्षा ली थी | जिसके कारण बिलदम्पति को अपने प्राण गवाने पड़े | धर्म ग्रंथों के अनुसार अरभुदाचाल पर्वत शिव भक्त आहोक आहूका नाम के एक बिलदम्पति रहेते थे | एक बार भगवान शंकर यतिनाथ के वेश मे उनके घर आए | उन्होंने बिलदम्पति के घर रात व्यतीत करने की इच्छा प्रगट की आहुक ने अपने पती को ग्रहस्ती का मर्यादा का स्मरण करवाते हुए स्वयं धनुष बाण लेके बाहर रात बिताने ओर याती को घरमे विश्राम करने का प्रशताव रखा | इस तरह आहुक धनुष बाण लेकर बाहर चला गया | प्राप्त काल आहूका ओर यती ने देखा की वन्य प्राणी ने आहुको मार डाला हे | इस पर यति नाथ बहुत दुखी हुए तब आहुक ने उन्हे शांत करते हुए कहा की आप शोख ना करे यतिथि सेवा मे प्राण विषरजन हमारा धर्म हे ओर उसका पालन कर हम धन्य हुए हे जब आहूका अपने पति की चिंता मे अग्नि मे जलने लगी तब शिव जी ने उसे दर्शन देकर पुनहे अपने पति को मिलने का वरदान दे दिया | 

12. कृष्ण दर्शन अवतार :


धर्म ग्रंथों के अनुसार इसवकुवांशि श्राद्ध की नवमी पेढ़ीमे राजा नभग का जन्म हुआ | विधा अध्यन गुरु कुलमे गए जब बोहट दिनों तक ना लोटे तो उनके भाईओ ने राज्य का विभाजन कर आपस मे बाट  लिया नभग को जब ये बात की गात हुई | तो वोह अपने पिता के पास गए पिता ने नभग को कहा वे यज्ञ करे ओर दंत को प्राप्त करे | तब नभग यज्ञ भूमि पोहच कर वेश्वदेव के सुप्त के स्पष्ट के उचारण द्धारा यज्ञ समपन किया उसी समय शिव जी कृष्ण रूप मे प्रकट हो कर बोले यज्ञ के धन पर तो उनका अधिकार हे विवाद होने पर कृष्ण रुप धारी शिवजी ने उसे अपने पिता से ही निर्णय किया तब नभग के पुछने पर श्राद्ध देव ने बताया की ये पुरुष कोई ओर नहीं भगवान शिव हे | 


13. अवधूत अवतार : 

भगवान शिव ने अवधूत अवतार लेकर  इन्द्र के अहेनकार को चूर किया था | धर्म ग्रंथों के अनुसार एक समय भ्रषपती ओर अन्य देवताओ साथ इन्द्र शिवजी के दर्शन के लिए कैलाश पर्वत के लिए गए | इन्द्र की परीक्षा लेने के लिए शंकर जी ने अवधूत अवतार धारण कर उनका मार्ग रोक लिया | इन्द्र ने उस पुरुष से अवज्ञा पूर्वक बार बार उसका परिचय पूछा तब भी वे मोन  रहा  इस पर क्रोधित हो कर इन्द्र ने अवधूत पर प्रहार करने के लिए वज्र छोड़ ना जाहा वेसे ही उनका हाथ स्थिर हो गया यह देखकर भ्रषपती ने शिवजी को पहेचान लिया अवधूत की स्तुति की जिससे प्रसन्न हो कर शिवजी ने इन्द्र को क्षमा कर दिया | 


14 . भिखशु अवतार :

शिव का ये अवतार ये संदेश देता हे की वही ये सृष्टि के रक्षक हे | धर्म ग्रंथों के अनूसार विधर्व नरेश सत्रज को सत्रुओ ने उसकी गर्भवती पत्नी ने सत्रुओ से छिपकर अपने प्राण बचाए समय आने पर उसने एक पुत्र को जन्म दिया | रानी जब जल पीने के लिए सरोवर गई तो उसे घड़ियाल ने उसे अपना आहार बना लिया तब वे बालक भूखा प्यासा तड़प ने लगा | तब ही शिवजी की पेरणा से एक भिखारी वहा पहोचि तब शिवजी ने भिखशु का रूप धारण कर उस भिखारी को बालक का परिचय दिया ओर उसे बालक का पालन पोषण करने को कहा तथा ये भी कहा ये बालक  विधर्व नरेश सत्रज पुत्र हे ये सब कहे कर भिखशु रूप ने शिव ने उस भिखारण को अपना वास्तविक रूप दिखाया | बड़ा हो क्र उस बालक ने शिवजी के कृपया से अपने दुश्मनो को हरा कर पुनहे अपना राज्य प्राप्त किया | 


15 . सुरेश्वर अवतार : 

भगवान शिव का सुरेश्वर अवतार भक्त के प्रति उनकी प्रेम भावना को दर्शाता हे | इस अवतार मे भगवान शिव ने एक छोटे से बालक उपमन्यु की भक्ति से  प्रसन्न   हो क्र उसे अपनी परम भक्ति ओर अमर पथ का वरदान दिया | धर्म ग्रंथों के अनुसार वग्रपाद का पुत्र उपमन्यु सदा दूध की इच्छा से व्याकुल रहेता था उसकी माने उसे अभिलाषा पूर्ण करने के लिए शिवजी की शरण मे जाने को कहा | इस पर उपमन्यु वन मे जाकर ॐ नमः शिवाय  का जप करने लगा शिवजी ने सुरेश्वर का रूप धारण कर उसे दर्शन दिए ओर शिव से अनेक प्रकार से नींद करने लगे इस पर उपमन्यु क्रोधित होकर शिवरूपी इन्द्र को मरने के लिए खड़ा हुआ | उपमन्यु की धीरड़ इच्छा शक्ति ओर विश्वश देख कर शिवजी उसे अपने वास्तविक रूप के दर्शन करवाए तथा शिव सागर के समान अनुस्वर सागर उसे प्रदान किया | उसकी प्रथन पर कृपालु शिव जी ने उसे परम भक्ति का पद भी दिया | 


16 . किरात अवतार : 

किरात अवतार मे भगवान शिव ने अर्जुन की वीरता की परीक्षा ली थी | महाभारत के अनुसार वन वास के दोरण जब अर्जुन भगवान शिव को  प्रसन्न   करने के लिए तपस्या कर रहे थे तभी दौरयोधन द्धारा भेज हुआ मूड नामक दैत्य अर्जुन को मरने के लिए सुवर का रूप धारण करके पहोचा | अर्जुन ने सुवर पर अपने बाणों से प्रहार किया | उसी समय भगवान शिव ने भी किरात वेश धारण कर उसी सुवर पर बाण चलाया | शिव की माय के कारण अर्जुन उसे पहेचान पाए ओर सुवर का वध उसके बाण से हुआ अे ये कहेने लगे | इस पर दोनों मे विवाद हो गया  अर्जुन ने किरात वेश धारी से युद्ध किया | भगवान शिव अर्जुन की वीरता देख भगवान शिव प्रसन्न   हो गए ओर अपने वास्तविक रूप मे आकार अरुजन को क्यूरोव पर विजय प्राप्त करने का आशीर्वाद दिया |

17 . सुनतनारक अवतार : 

पार्वती के पिता हिमाचल से उनकी पुत्री का हाथ माग्ने  के लिए सुनतनारक वेश धारण किया हाथ मे डमरू लेकर शिव जी नट के रूप मे हिमाचल के घर पहोचे ओर नुत्य करने लगे | नटराज शिव ने इतना सुंदर ओर मनोहर नृत्य किया की सभी प्रसन्न  हो गए जब हिमाचल ने नटराज को भिक्षा माग्ने को कहा तो नटराज शिव ने भिक्षा मे पार्वती को मांग लिया | इस पर हिमाचल राज यति क्रोधित हुए | कुछ देर बाद नटराज वेश धारी शिवजी पार्वती को अपना रूप दिखा कर स्वयं वह से चले गए | उनके जाने पर मेन ओर हिमाचल को दिव्य ज्ञान हुआ | उन्होंने पार्वती को शिव जी को देने का निश्चय कर लिया |

18 . ब्रह्मचारी अवतार:

जब सती ने पार्वती के रूप में जन्म लिया और भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की, तो सती उनके सामने ब्रह्मचारी के रूप में प्रकट हुईं। उन्होंने पार्वती की भक्ति का परीक्षण करने के लिए शिव को गालियां दीं। और पार्वती, जो भगवान शिव को किसी और से ज्यादा प्यार करती थीं, ने ब्रह्मचारी को करारा जवाब दिया। आखिरकार, भगवान शिव ने खुद को प्रकट किया और पार्वती को आशीर्वाद दिया। 



19. यक्षेश्वर अवतार:

भगवान शिव के यक्षेश्वर अवतार ने अमृत, दिव्य अमृत का सेवन करने के बाद देवताओं के अभिमान / शालीनता को कुचलने के लिए प्रकट किया। उसने उन्हें घास का एक ब्लेड काटने के लिए कहा, और वे अपनी संयुक्त शक्तियों के साथ भी इसे नष्ट करने में विफल रहे। इसके बाद, भगवान शिव से माफी मांगी। 


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