पृथ्वीराज चौहान का इतिहास जानिए | Pruthviraj Chauhan ka itihas janiye
हैलो दोस्तों मे हु Julie आप सभी का मेरे blog signola मे आपका स्वागत हे | आज मे आपको बताने वाली हु तो आज शुरू करते हे पृथ्वीराज चौहान का इतिहास जानिए |
पृथ्वीराज चौहान शूरवीर योद्धा थे जिनके साहस और पराक्रम के किस्से भारत के इतिहास के पन्नों पर अक्षरों में लिखे गए हैं | वे एक आकर्षक कदगाठीक के योद्धा थे सभी सैनी विद्या में निपुण थे | उन्होंने अपने अद्भुत साहस से दुश्मनों को धूल चटाई थी | वीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है मोहम्मद गौरी द्वारा उन्हें बंधक बना लिया गया और उनसे उनकी आंखों की रोशनी भी छीन ली गई तब भी उन्होंने गौरी के दरबार में उसे मार गिराया था | पृथ्वीराज चौहान के करीबी दोस्त एवं कवि चैन वरदायिनी अपनी काव्य रचना पृथ्वीराज चौहान रासो में यह भी उल्लेख किया है कि विराज चौहान घोड़ों पे हाथियों को नियंत्रण करने की विद्याओं में भी निपुण थे | आइए जानते हैं इतिहास के इस महान अयोध्या के जीवन से जूड़ी कुछ रोचक बातें | हैलो दोस्तों मे हु आपकी दोस्त जुली स्वागत हे आप सभी का My blogs Signola मे |
भारतीय इतिहास के सबसे महान और साहस योद्धा पृथ्वीराज चौहान | चौहान वंश के क्षत्रिय शासक सोमेश्वर और कपूरदेवी के घर साल 1149 मे जन्मे थे | ऐसा कहा जाता है कि वे उनके माता पिता के शादी के कई सालों बाद काफी पूजा-पाठ और मन्नते मांगने के बाद जन्मे थे | वही उनके जन्म के समय से ही उनकी मृत्यु को लेकर सोमेश्वर की राज्य में षड्यंत्र रति जाने लगे थे लेकिन उन्होंने अपने दुश्मनों की हर साजिश को नाकाम कर दिया और वे अपने पथ पर आगे बढ़ते चले गए | राज घराने में पैदा होने की वजह से ही शुरु से ही पृथ्वीराज चौहान का पालन पोषण काफी सुख सुविधा से भरी पूर्ण अर्थात वैभव पूर्ण वातावरण में हुआ था | उन्होंने सरस्वती कंठा भारण विद्या पीठ से शिक्षा प्राप्त की थी | जबकि युद्ध और शस्त्र विद्या की शिक्षा उन्होंने अपने गुरु श्री राम जी से प्राप्त की थी | पृथ्वीराज चौहान बचपन से ही साहसी , पराक्रमी और युद्ध कला में निपुण थे | शुरुआत से ही पृथ्वीराज चौहान ने शब्दभेदी बाण चलाने की अद्भुत कला सीख ली थी जिसमें वे बिना देखे आवाज के आधार पर गाने चला सकते थे और सटीक निशाना लगा सकते थे बचपन में चंद्रवरदाई पृथ्वीराज चौहान के सबसे अच्छे चित्र थे जॉन के एक भाई की उनका ख्याल रखते थे | आपको बता दें कि चंद्रवरदाई तोमर वंश के शासक आनंदपाल के बेटी के पुत्र थे 9:00 बाद में पृथ्वीराज चौहान के सहयोग से ईथौरागढ़ का निर्माण कराया था | विराज चौहान जब वह 11 साल के थे तभी उनके पिता सोमेश्वर की एक युद्ध में मृत्यु हो गई इसके बाद वह अजमेर के अधिकारी बने एक आदर्श शासक की तरह अपनी प्रजा की सभी उम्मीदों पर खरे उतरे इसके अलावा पृथ्वीराज चौहान ने दिल्ली पर भी अपना काजल आया दरअसल उनकी मां कपूरादेवी अपने पिता आनंदपाल की इकलौती बेटी थी | इसीलिए उनके पिता ने अपने दामाद और अजमेर के शासक ईश्वर चौहान से पृथ्वीराज चौहान की प्रतिभा भापते हुए अपने साम्राज्य का उत्तराधिकारी बनाने की इच्छा प्रकट की थी | उसके तहत 1166 उनके नाना आनंदपाल की मृत्यु के बाद पृथ्वीराज चौहान दिल्ली के राज सिंहासन पर बैठे और कुशलता पूर्वक उन्होंने दिल्ली की सत्ता संभाली | एक आदर शासक के तौर पर उन्होंने अपने साम्राज्य मजबूती देने के लिए कई कार्य किए के विस्तार करने के लिए प्यार भी चलाएं और इस प्रकार एक वीर योद्धा एवं लोकप्रिय शासक के तौर पर पहचाने जाने लगे |
पृथ्वीराज चौहान रानी संयोगिता की प्रेम कहानी आज भी मिसाल दे जाती है और उनकी प्रेम कहानी पर कई टीवी सीरियल और फिल्में भी बन चुकी है | पृथ्वीराज चौहान की अद्भुत साहस और वीरता के किस्से हर तरफ वही राजा जयचंद की बेटी संयोगिता ने उनकी बहादुरी और आकर्षण के किस्से सुने उनके ह्रदय मे पृथ्वीराज चौहान के लिए एक प्रेम भावना उत्पन्न हो गई और वे चोरी छुपे गुप्त रूप से पृथ्वीराज चौहान को पत्र भेजने लगी | पृथ्वीराज चौहान भी राजकुमारी संयोगितारा की खूबसूरती से बेहद प्रभावित थे और वे भी राजकुमारी की तस्वीर देखते ही उनसे प्यार कर बैठे | वहीं दूसरी तरफ रानी संयोगिता के बारे में उनके पिता राजा जयचंद को पता चला तो उन्होंने अपनी बेटी संयोगिता के विवाह के लिए स्वयंवर करने का फैसला किया | वहीं इस दौरान राजा चंदन है समस्त भारत पर अपना शासन चलाने के इच्छा के चल अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया था | इस यज्ञ के बाद ही रानी संयोगिता का स्वयंवर होना था भाई पृथ्वीराज चौहान नहीं जाते थे की कोर और घमंडी राजा जयचंद का भारत में प्रभात हो इसीलिए उन्होंने क्या जयचंद का विरोध भी किया था | जिसे राजा जयचंद के मन में पृथ्वीराज के प्रति किराना और ग्रना और भी ज्यादा बढ़ गई | जिसके बाद उन्होंने अपने बेटी की स्वयंवर के लिए देश के कई छोटे-बड़े महान योद्धाओं को न्योता दीया लेकिन पृथ्वीराज चौहान को अपमानित करने के लिए न्योता नहीं भेजा और द्वारपालों के स्थान पर पृथ्वीराज चौहान मूर्तियां लगा दी पृथ्वीराज चौहान जयचंद की चालाकी समझ गए उन्होंने अपने प्रेमिका को पाने के लिए एक गुप्त योजना बनाई बता दे कि उस समय हिंदू धर्म में लड़कियों को ना मनपसंद वर ने का अधिकार था | वही अपने स्वयंवर में किसी भी व्यक्ति के गले में माला डालती है वह उस की रानी बन सकती थी वही स्वयंवर के दिन कई बड़े बड़े राजा प्ले सौंदर्य के पहचानी जाने वाली राजकुमारी संयोगिता से विवाह करने के शामिल हुए | उसी समय स्वयंवर में संयोगिता अपने हाथों में वरमाला लेकरएक एक कर सभी राजाओं को पास से गुजरी और उनकी नजर द्वार पर स्थित पृथ्वीराज चौहान की मूर्ति पर पड़ी तब उन्होंने द्वार पर खड़ी पृथ्वीराज की मूर्ति पर हार डाल दिया | जिसे देखकर स्वयंवर में आए हुए सभी राजा खुद को अपमानित महसूस करने लगे पृथ्वीराज चौहान अपनी गुप्त योजना के मुताबिक द्वारपाल के प्रतिमा के पीछे खड़े थे और तभी उन्होंने राजा जयचंद के सामने रानी संयोगिता का उठाया और सभी राजा को युद्ध के लिए ललकार का अपनी राजधानी दिल्ली चले गए |
इसके बाद राजा जयचंद गुस्से से आगबबूला हो गया और इसका बदला लेने के लिए इसकी सेना ने पृथ्वीराज चौहान का पीछा किया लेकिन उसकी सेना महान पराक्रमी पृथ्वीराज चौहान को पकड़ने में असमर्थ रही | जयचंद के सैनिक शिवराज चौहान का बाल भी बांका नहीं कर सके | हालांकि इसके बाद राजा जयचंद पृथ्वीराज चौहान के बीच साल 1189 मैं और 1190 मैं भयंकर युद्ध हुआ | जिसमें कई लोगों की जानें गई और दोनों सेनाओं को भारी नुकसान पहुंचा | दूरदर्शी शासक पृथ्वीराज चौहान की सेना बहुत बड़ी जिसमें करीब 300000 सैनिक और 300 हाथी थे | उनकी विशाल सेना में घोड़ों की सेना का भी खास महत्व था | पृथ्वीराज चौहान ने अपनी विशाल सेना के वजह से न सिर्फ कई युद्ध जीते बल्कि वे अपने राज्य का विस्तार करने मैं भी कामयाब रहे | वहि पृथ्वीराज चौहान कैसे कैसे युद्ध जीते गए वैसे-वैसे वे अपनी सेना को भी बढ़ाते गए चौहान वंश के सबसे बुद्धिमान और दूरदर्शी शासक पृथ्वीराज चौहान ने अपने शासनकाल में अपने राज्य को एक नए मुकाम पर पहुंचा दिया था | उन्होंने अपने राज्य में अपनी कुशल नीतियों के चलते अपने राज्य के विस्तार अंडे में कोई कोर कसर छोड़ी थी | पृथ्वीराज चौहान पंजाब में भी अपना सिक्का जमाना जाते थे लेकिन उस दौरान पंजाब में मोहम्मद शहाबुद्दीन गौरी का शासन था | वही पृथ्वीराज चौहान की पंजाब पर राज करने की मोहम्मद शहाबुद्दीन गौरी के साथ युद्ध करके ही पूरी हो सकती थी | जिसके बाद पृथ्वीराज चौहान ने अपने विशाल सेना के साथ मोहम्मद गौरी पर आक्रमण कर दिया | इस हमले के बाद पृथ्वीराज चौहान ने सरहिंद , सरस्वती और हांसी पर अपना राज स्थापित कर लिया लेकिन इसी बीच हीलवाड़ा मैं मोहम्मद गौरी की सेना ने हमला किया तू पृथ्वीराज चौहान का सैनेबल कमजोर पड़ गया ओके चलते पृथ्वीराज चौहान को सरहिंद के किले से अपना अधिकार कोहरा पड़ा | बाद में पृथ्वीराज चौहान ने अकेले ही मोहम्मद गौरी का वीरता के साथ मुकाबला किया जिसके चलते मोहम्मद गौरी बुरी तरह घायल हो गया और बाद में मोहब्बत गौरी को इसी उठकर छोड़कर भागना पड़ा हालांकि इस युद्ध का कोई निष्कर्ष नहीं निकला | यह युद्ध सरहिंद के किले के पास तराइन ही नाम की जगह पर हुआ था | इसीलिए इसे तराइन का युद्ध भी कहा जाता है | कहा जाता है कि पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी को 17 बार पराजित किया था लेकिन हर बार उन्होंने उसे की विधि छोड़ दिया वही पृथ्वीराज चौहान से कितनी बार हारने के बाद मोहम्मद गौरी मन ही मन प्रतिशोध की भावना से भर गया था | वही जब संयोगिता के पिता पृथ्वीराज चौहान के दुश्मन जयचंद को इस बात की भनक लगी तो उसने मोहम्मद गोरी से अपना हाथ मिला लिया दोनों ने पृथ्वीराज चौहान को जान से मारने का षड्यंत्र रचा | इसके बाद दोनों ने मिलकर साल 1992 मैं अपने मजबूत सेनेबल के साथ पृथ्वीराज चौहान पर फिर से हमला किया | वही जब इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान अकेले पड़ गए थे तब उन्होंने अन्य राजपूत राजाओं से मदद मांगी थी लेकिन स्वयंवर में उठ पृथ्वीराज चौहान द्वारा किए गए मांग को लेकर कोई भी शासक उनकी मदद के लिए आगे नहीं आया | इस मौके का फायदा उठाते हुए राजा जयचंद पृथ्वीराज चौहान का भरोसा जीतने के लिए अपना सेनेबल पृथ्वीराज चौहान को सौंप दिया वही उदार स्वभाव के पृथ्वीराज चौहान राजा जयचंद की इस चाल को समझ नहीं पाए और इस तरह राजा जयचंद धोखेबाज सैनिको पृथ्वीराज चौहान के सैनिक संघार कर दिया और युद्ध के बाद मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान और उनके मित्र चंदवरदाई को अपने जाल में फंसा कर उन्हें बंधक बना लिया और उन्हें अपने साथ अफगानिस्तान ले गया इसके बाद मोहम्मद गौरी दिल्ली पंजाब अजमेर और कन्नौज में शासक किया | हालांकि राजा पृथ्वीराज चौहान के बाद कोई भी राजपूत शासक भारत में अपना राज जमा कर अपनी बहादुरी साबित नहीं कर पाया | पृथ्वीराज चौहान से कई बार पराजित होने के बाद मोहम्मद गौरी अंदर ही अंदर प्रतिशोध की भावना से भर गया था | इसलिए बंधक बनाने के बाद पृथ्वीराज चौहान को उसने कई शारीरिक यातनाएं दी एवं पृथ्वीराज चौहान ने मुस्लिम बनने के लिए भी प्रताड़ित किया | वही काफी यातनाएं से कहने के बाद भी वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान मोहम्मद गौरी के सामने झुके नहीं और दुश्मनों के दरबार में भी माथे पर किसी तरह की सीकर नहीं थे | इसके साथ अमानवीय कृति को अनजाब जामदेने वाले मोहम्मद गोरी आंखों में आंखें डाल कर पूरे आत्मविश्वास के साथ देखते रहे जिसके बाद गौरी ने उन्हें अपनी आंखें नीचे करने का आदेश भी दिया लेकिन इस राजपूत योद्धा पर तनेक भी प्रभाव नहीं पड़ा जिसको देखकर मोहम्मद गौरी क्रोध सातवें आसमान पर पहुंच गया | और उसने पृथ्वीराज चौहान की आंखें गर्म सलाखों से जला देने का आदेश दिया यही नहीं आंखें जला देने के बाद भी क्रोध शासक मोहम्मद गोरी ने उन पर कई झुल म उठाएं और अंत में पृथ्वीराज चौहान को जान से मार देने का फैसला किया | वहीं इससे पहले मोहम्मद गौरी की पृथ्वीराज चौहान को मार देने की साजिश है कामयाब होती | पृथ्वीराज चौहान करीबी मित्र और राज कवि चंद्रवरदाई ने मोहम्मद गौरी को पृथ्वीराज चौहान की शब्दभेदी बाण चलाने की खूबी बताइए | जिसके बाद मोहब्बत गौरी हंसने लगा की भला एक अंधा कैसे बाण चला सकता है | लेकिन बाद में गौरी अपने दरबार में तीरंदाजी प्रतियोगिता का आयोजन करने के लिए राजी हो गया |व ही इस प्रतियोगिता में शब्दभेदी बाण चलाने के उस्ताद पृथ्वीराज चौहान मित्र राज कवि चंद्रवरदाई के माध्यम से अपनी यह अद्भुत कला दिखाइए और भरी सभा में पृथ्वीराज चौहान ने चंद्रवरदाई दोहों की सहायता से मोहम्मद गौरी की दूरी और दिशा को समझते हुए गौरी के दरबार में उसका वध कर दिया यह दोहा कुछ इस प्रकार का था |
“ चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण,
ता ऊपर सुल्तान है मत चूको चौहान ”
इसके बाद पृथ्वीराज और चंद्रवरदाई ने अपने दुश्मनों के हाथों मरने की वजह एक दूसरे पर बाण चलाकर अपनी जीवन लीला खत्म कर दी | वही जब राजकुमारी संयोगिता को यह बात की खबर लगी तो उन्होंने भी पृथ्वीराज चौहान के वीयोग मैं प्राण दे दिए |
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