आत्मा क्या है जानिए | Aatma kya hai janiye

 

 हैलो दोस्तों आप सभी का मेरे blog signola मे आपका स्वागत हे | आज मे आपको बताने वाली हु तो आज शुरू करते हे  कर्म क्या है  |


तो 24 वस्तु से बना मनुष्य नामक यंत्र मे वाश करता है ये पुरुष अर्थात परमात्मा का अंश उसे आत्मा कहा गया है | जब प्रकृति ओर पुरुष का मेल होता है अर्थात जब परमात्मा का अंश आत्मा जानकर मनुष्य ध्येय मे वाश करता है | तब मनुष्य जीवित होता है | मनुष्य जे से रथ का उपयोग करता हैवेसे ही आत्मा शरीर नामक इस यंत्र का उपयोग करती है | शरीर के माध्यम से शरीर सुख दु:ख का उपभोग करती है पर आत्मा शरीर नहीं है | इस शरीर का नाश किया जा सकता है पर आत्मा का नाश नहीं किया जा सकता |



नैंन छिंदन्ती शसत्राणी नैंन दहती पावक : |

              न चैनं क्लेदयनत्यायो न शोष्यति मारुत : ||


अनुवाद : त्मा न शस्त्रों से छेदी जा सकती है ना ही अग्नि से जलाई जा सकती है न उसे जल से निर्बल कर सकता है नहीं पवन उसे सुख सकता है | 


आत्मा शरीर मे रहते हुए भी अमर है | शरीर की हत्या की जाती है पर आत्मा की हत्या की हत्या नहीं की जा सकती | आत्मा सर्व व्यापी है , अचल है , स्थिर है , सनातन है | 


पुराना वस्त्र त्याग कर मनुष्य नया वस्त्र धारण करता है | वे से ही आत्मा पुराना शरीर छोड़ कर बार बार नया शरीर धारण करती है |


परंतु हम सब ये सोचते होगी की हम पूरे दुनिया अनुभव हमारे शरीर के माध्यम से ही करते है स्वयं को देखना जानकर आत्मा को के से जाने |


स्वयं को आत्मा रूप मे जाना असंभव भी नहीं है | अंध भी जीते है , गुगे भी जीते है , जिनके हाथ पैर नहीं होते वो भी जीते है | ये शरीर मनुष्य नहीं जिसकी चैतन्य की जाती है उसे मूर्छा जाती है वही जीवित रहता है | इसलिए स्पष्ट है है मनुष्य चैतन्य वो भी शरीर नहीं इसी प्रकार जो व्यक्ति  अपने भीतर खोज करता है | शरीर नहीं , भवन ये नहीं , विचार नहीं , ज्ञान भी मे नहीं जो ये समझ तो जाता है | वो अंत मे स्वयं को आत्मा रूप मे जन ही लेता है | 


प्रकृति के 24 पदार्थ से गिरी इस आत्मा को समझ हो जाता है की वो परमात्मा का अंश है | अधिक तर आत्मा मे अपनी ध्येय कोई ही सब कुछ मानती है | वो स्वयं ध्येय से ही भिन्न है वो जन ही नहीं पट्टी शरीर को जो सुख , दु:ख , स्वाद , गंध का अनुभव होता है उसे अपना अनुभव मन लेती है ओर बदलाव का प्रयश ही नहीं करती | जो आत्मा प्रयत्न नहीं करती | निरंतर अधर करती है उने इसलिए दंड देना अनिवार्य है तुम सब भी जन लो आप एक शरीर नहीं केवल एक आत्मा हो |


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